Sadhana Shahi

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छोटे किसान और सर्वहारा वर्ग (कहानी) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु 18-Mar-2024

दिनांक-18-03-20242 दिवस- सोमवार प्रदत्त विषय- छोटे किसान और सर्वहारा वर्ग (कहानी) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु

सारे बच्चे क्लास में बैठकर पढ़ाई कर रहे थे मात्र 4 बच्चे बाहर खड़े थे ।उनमें से एक रमा थी जिसकी फ़ीस एक साल से उसके पिता नहीं दे पाए थे। दो कालांश चारो बच्चे बाहर खड़े रहे ,उसके पश्चात प्रधानाचार्य जी आए और तीन बच्चों को यह कहकर क्लास में भेज दिए कि जल्दी ही पापा से कहकर फ़ीस जमा करा देना।

लेकिन रमा को बुरी तरह से झिड़कते और डाॅंटते हुए बोले- यदि इस महीने तुम्हारी फ़ीस नहीं जमा होगी तो तुम्हें स्कूल आने की ज़रूरत नहीं है । यहाॅं कोई धर्मशाला नहीं खुला हुआ है। फिर स्वयं में बड़बड़ाते हुए ऑफ़िस में चले गए (पता नहीं कैसे-कैसे लोग चले आते हैं )।

रमा की आंँखों में आंँसू भरे हुए थे।वह पूरे दिन कक्षा के बाहर खड़ी रही छुट्टी होने के पश्चात घर गई और माॅं से पूछी- माॅं पिताजी कहाॅं हैं? माॅं ने कहा- तेरे पिताजी कल से आए ही नहीं कल से वो खेत पर ही हैं।

रमा ने अपना बस्ता रखा और दौड़ते हुए पिताजी के पास गई और उससे लिपट कर फफक- फफक कर रोने लगी। पिताजी ने उसे बड़े प्यार से चुप कराया और पूछा- क्या बात है? क्यों मेरी बच्ची रो रही है ?तब रमा ने पिताजी को उस दिन की सारी घटना के बारे में बताया।

पिताजी ने बच्ची को सांत्वना देते हुए कहा- बस बेटा! कुछ दिन की बात है, इस बार फ़सल बड़ी ही अच्छी हुई है इस महीने तेरी फ़ीस निश्चित रूप से मैं दे दूॅंगा। रमा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था।

रमा ने पिताजी से पूछा- क्या हम लोग गाॅंव के बाहर जो बड़ा सा पार्क है उसमें भी चलेंगे? पिताजी ने कहा- हाॅं बेटा हम लोग पार्क में घूमने चलेंगे। फिर रमा ने पूछा- क्या वहाॅं पार्क के बाहर जो अंकल गोलगप्पे और मलाई बर्फ खिलाते हैं वह भी खाएँगे? पिताजी ने कहा -हाॅं बेटा हम लोग गोलगप्पे और मलाई बर्फ भी खाएंँगे ।

रमा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। वह पार्क घूमने जाने का सपना सॅंजोते हुए खु़शी-खु़शी अपने घर जा रही थी । उसे रास्ते में जो भी मिलता है सबको कहती हम लोग गाॅंव के बाहर वाला पार्क देखने जाएंँगे, हम लोग गोलगप्पे और मलाई बर्फ खाएंँगे। तभी रास्ते में उसे काकी मिल गईं।

काकी ने रमा से पूछा- क्या बात है रमा बड़ी खु़श नज़र आ रही है? रमा ने बताया- इस बार हमारी फ़सल बड़ी अच्छी हुई है । हम लोग गाॅंव के बाहर वाला पार्क घूमने ,देखने जाएंँगे ,और मलाई बर्फ खाएँगे । काकी रमा से पूछीं- मेरे लिए क्या लाएगी रमा? रमा बोली- आपके लिए, आपके लिए नई चुनरी।

दूसरे दिन बड़े खु़शी मन रमा स्कूल गई ।स्कूल में फिर से उसे प्रिंसिपल ने बुलाया और पूछा-कब तक तुम्हारी फ़ीस जमा होगी? रमा ने कहा- सर इस महीने निश्चित रूप से हो जाएगी। पिताजी ने कहा है, इस बार हमारी फ़सल बड़ी अच्छी हुई है। वो इस महीने ज़रूर फीस जमा कर देंगे । रमा बहुत ख़ुश थी, लेकिन यह क्या ! उसकी ख़ुशी को तो मानो ग्रहण लग गया। तेज आंँधी- तूफ़ान चलने लगा,ओले गिरने लगे। जैसे-जैसे तूफ़ान की गति बढ़ती वैसे- वैसे रमा की उम्मीद टूटी जा रही थी। करीब एक घंटे तबाही मचाने के पश्चात ओला और तूफ़ान थमा , लेकिन जब तक ओला और तूफ़ान थमा तब तक रमा के सारे सपने चूर होकर उस तूफान में बहकर , उड़कर कहीं दूर चले गए थे। रमा बड़े दुखी मन से घर आई तो देखी उसके पिताजी और माॅं दोनों उदास मन से बैठे हैं। पिताजी की आंँखें डबडबाई हुई थीं। अगले दिन फिर रमा स्कूल गई और प्रिंसिपल ने फिर उससे पूछा- तुम्हारे पिताजी कब फ़ीस जमा कर रहे हैं ? रमा की जुबान बंद थी, अगर कुछ बोल रही थी तो उसकी आंँखें, अविरल अश्रुधार, उसकी आंँखें थमने का नाम नहीं ले रही थीं। उसकी ज़ुबान बिल्कुल सिल गई थी। प्रिंसिपल ने उसे झिड़कते हुए कहा- चली जाओ ,आज के बाद तब तक स्कूल नहीं आना जब तक कि तुम्हारे पिताजी फ़ीस नहीं ले करके आएंँगे। बोझिल मन से रमा ने अपना बस्ता उठाया और आंँखों में आँसू भरे स्कूल से घर चली जा रही थी। और सोचते जा रही थी क्यों, आखिर क्यों भगवान ने ऐसा किया? क्यों हमारे फ़सल को चौपट कर दिया? रमा के पढ़ाई करने, पार्क घूमने , गोलगप्पे खाने ,मलाई बर्फ़ खाने और काकी के लिए चुनरी लाने का सपना , सपना ही रह गया था । और कुछ उसके पास कुछ था तो आंँसू,अवसाद, निराशा, दुख।

यह है हमारे भारतीय समाज के छोटे किसानों तथा सर्वहारा वर्ग के लोगों का जीवन जिसे उच्च वर्ग के लोग कई बार महसूस ही नहीं करते हैं। उनके लिए थाली में खाना छोड़ना, क्षण भर पहनने वाले कपड़ों के लिए लाखो-लाख रूपए ख़र्च करना फैशन है , जबकि उसी खाने के लिए, और तन ढॅंकने लायक मोटिया - मारकीन जैसे कपड़ों के लिए एक मज़दूर, एक किसान आत्महत्या तक कर लेता है ।

अतः आज आवश्यकता है उनके दर्द को समझने की, इन्हें सहारा देने की , उनके साथ समय गुज़ारने की और इनके द्वारा बनाई गई चीज़ों और उत्पन्न किए गए अनाजों की कद्र करने की।

यदि हम छोटे किसानों और सर्वहारा वर्ग के लोगों के दुख- दर्द को समझना चाहें तो हमारी उम्र बीत जाएगी, किंतु उनके दर्द को हम वास्तविक रूप में नहीं समझ पाएंँगे । आज के छोटे किसानों और सर्वहारा वर्ग के लोगों का दर्द इतना अधिक है जिसे महसूस करने के लिए एक भावुक और संवेदनशील हृदय का होना परमावश्यक है।

किंतु आज समाज के कुछ उच्च तबके के लोग इन मुसीबतों से अनभिज्ञ हैं। छोटे किसान तथा सर्वहारा वर्ग के लोगों को निम्न दर्जे का समझना और उन्हें उपेक्षित करना इस अनभिज्ञता का ही परिणाम है।

साधना शाही ,वाराणसी

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8 Comments

Babita patel

30-Mar-2024 09:57 AM

Amazing

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RISHITA

21-Mar-2024 11:39 PM

V nice

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Mohammed urooj khan

19-Mar-2024 11:58 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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